मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो आंध्र प्रदेश राज्य के श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के मल्लिकार्जुन रूप को समर्पित है, जहाँ भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की भी पूजा की जाती है। मल्लिकार्जुन का नाम “मल्लिका” (देवी पार्वती) और “अर्जुन” (भगवान शिव) से लिया गया है, जो इस स्थान के आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती यहाँ अपने दिव्य रूप में निवास करते हैं और भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का स्थान
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में नल्लमाला पर्वत श्रृंखला के श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। यह स्थान कृष्णा नदी के तट पर बसा है। श्रीशैलम के इस पवित्र मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्तों को घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच से गुजरना होता है, जो इस यात्रा को आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर बना देता है।
इतिहास:
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय जब नाराज होकर दक्षिण दिशा में चले गए, तब माता–पिता उनके पीछे–पीछे इस पर्वत पर पहुंचे। भगवान शिव ने यहां निवास करने का निर्णय लिया, और इस स्थान पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई। इसके अलावा, मंदिर के प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि आदि शंकराचार्य ने भी यहां आकर पूजा–अर्चना की थी।
वास्तुकला:
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की है, जो दक्षिण भारत के मंदिरों की विशेषता है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के साथ देवी पार्वती की मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर परिसर में अनेक छोटे–छोटे मंदिर भी स्थित हैं, जो विविध देवताओं को समर्पित हैं। नक्काशीदार स्तंभ, विशाल गोपुरम (मंदिर का द्वार) और शिल्पकारी इस मंदिर को वास्तुकला की दृष्टि से अद्वितीय बनाते हैं।
संस्कृति:
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र है। यहां हर वर्ष शिवरात्रि और नवरात्रि के अवसर पर बड़े पैमाने पर उत्सव मनाया जाता है। इन धार्मिक आयोजनों में लाखों श्रद्धालु देश–विदेश से आते हैं। श्रीशैलम क्षेत्र में विभिन्न लोक कलाओं और पारंपरिक नृत्यों का भी आयोजन होता है, जो यहां की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है।
महत्त्व:
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह ज्योतिर्लिंग शिव और शक्ति के संयुक्त स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इसे भक्तों के बीच विशेष श्रद्धा का केंद्र माना जाता है। पुराणों के अनुसार, इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और दुखों का अंत होता है।
पूजा विधि
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पूजा विधि अन्य ज्योतिर्लिंगों के समान होती है। भक्त यहां सुबह–सुबह जलाभिषेक, रुद्राभिषेक और शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पण करते हैं। मंदिर में भक्तजन अपनी श्रद्धा के अनुसार विशेष पूजा और हवन भी करवा सकते हैं। साथ ही, मंदिर में अन्नदान का भी विशेष महत्व है, जहां हजारों लोग प्रतिदिन भोजन ग्रहण करते हैं।
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निष्कर्ष
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, वास्तुकला और पौराणिक इतिहास का जीवंत प्रतीक भी है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर इसे एक अनूठा तीर्थस्थल बनाते हैं। यहां आकर भक्तजन न केवल आध्यात्मिक शांति प्राप्त करते हैं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विविधता का भी अनुभव करते हैं।