ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो मध्यप्रदेश राज्य के खंडवा जिले में स्थित है। यह स्थान भगवान शिव के “ओंकारेश्वर” रूप के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ शिवलिंग की पूजा की जाती है। ओंकारेश्वर का नाम ‘ओं’ (अक्षर) और ‘कार’ (ध्वनि) से लिया गया है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख मन्त्र “ओं” से संबंधित है। यहाँ की मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने भगवान श्रीराम के प्रार्थना से इस स्थान पर अवतार लिया था। यहां स्थित शिवलिंग भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरूप है, जो श्रद्धालुओं को शांति और आशीर्वाद प्रदान करता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्त्व अत्यधिक है और यह स्थान हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान
ओंकारेश्वर, मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में, मां नर्मदा नदी के पवित्र तट पर स्थित है। यह स्थान नर्मदा नदी के दो धाराओं में विभाजित होकर बने ओंकार आकार के द्वीप पर बसा है। ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग इसी पवित्र द्वीप पर स्थित है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का केंद्र है। यहां पहुंचने के लिए इंदौर से लगभग 80 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और नर्मदा नदी की धारा इस स्थान को और भी रमणीय बनाती है।
इतिहास:
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास पौराणिक कथाओं में बसा है। यह माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने असुरों को पराजित कर देवताओं को विजय दिलाई थी। इसके साथ ही, यह भी कहा जाता है कि यहां आदि शंकराचार्य ने भगवान शिव की आराधना कर अद्वैत वेदांत की स्थापना की थी। इस स्थान का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है, जहाँ इसे शिव के निवास स्थल के रूप में वर्णित किया गया है।
वास्तुकला:
ओंकारेश्वर मंदिर की वास्तुकला अत्यंत प्रभावशाली है। यह मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर में पत्थरों पर की गई बारीक नक्काशी और इसकी भव्यता श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करती है। मंदिर परिसर में मुख्य ज्योतिर्लिंग के अलावा अन्य छोटे–छोटे मंदिर भी स्थित हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना धार्मिक महत्व है। मंदिर की संरचना में शिखर शैली की विशेषता देखने को मिलती है, जो इसे दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला का संगम बनाती है।
संस्कृति:
ओंकारेश्वर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का भी प्रतीक है। यहां वर्ष भर विभिन्न धार्मिक उत्सव और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा और मेले का आयोजन होता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। यहां की संस्कृति में शैव धर्म की गहनता और नर्मदा नदी की महत्ता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। यहां हर दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है, और शिव भक्त भक्ति–भाव से ओंकारनाथ की आराधना करते हैं।
महत्त्व:
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। धार्मिक मान्यता है कि यहां भगवान शिव के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। नर्मदा नदी के तट पर होने के कारण इस स्थान का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि नर्मदा नदी को भारत की पवित्र नदियों में एक विशेष स्थान प्राप्त है।
पूजा विधि
ओंकारेश्वर में भगवान शिव की पूजा विशेष विधि से की जाती है। श्रद्धालु सुबह से ही मंदिर पहुंचकर जल, दूध, फूल, बिल्वपत्र आदि से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। विशेष रूप से सोमवार के दिन यहां की पूजा का महत्व अधिक होता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। भक्तगण यहां भगवान शिव से अपने परिवार की सुख–समृद्धि और मंगल कामना करते हैं।
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निष्कर्ष
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भारतीय धार्मिक स्थल के रूप में अद्वितीय है। इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व इस स्थान को श्रद्धालुओं के लिए विशेष बनाता है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और नर्मदा नदी के किनारे स्थित यह पवित्र स्थल शिवभक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। ओंकारेश्वर की यात्रा न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है, बल्कि भारतीय संस्कृति और धर्म की गहराईयों से परिचय कराती है।